हज़रत मशीन वाले बाबा साहब
( तालिब हुसैन )
जबलपुर. जिनके पास सुख सुविधाओं का अम्बार था. ज़माना जिनके आगे नतमस्तक था.. दौलत शौहरत जिनके कदमों पर थी.. जिसको एक नज़र देख लिया, उसका बेड़ा पार हो गया..
जिनके आस्ताने पर पकवानो की ख़शबू रोज़ाना मेहकती हो..जिनके दीदार के लिए बड़े बड़े तड़पते थे..जिनके हाथ के पानी में भी अल्लाह ने शिफ़ा घोल दी थी.. जिनकी सारी जिंदगी करामतों से भरी रही..लेकिन सब कुछ होने के बावजूद जिन्होंने फ़कीरी व ख़ाकसारी में जीवन गुज़ारा. बोरे को हमेशा अपना बिछौना बनाया.. जिन्हें खान पान की कोई चिंता नहीं थी.. और जब ख़ुदा की याद में लीन होते, तो कई कई दिन हुजरे में कैद रहते. इसे कुदरत की शान ही कहा जाएगा कि हुजरे में बन्द रहने के दौरान ना भूख लगती और ना ही प्यास.. जिनकी दुआओं से ना जाने कितनी नि:संतान महिलाओं की सूनी गोद किलकारियों से गूँज उठी..और ना जाने ऐसे कितने मरीज़ हैं जिन्हें डाक्टर चन्द दिनों का मेहमान मानकर उन्हें लौटा चुके थे...ऐसे अनगिनत निराशा लोगों को अल्लाह ने जिनकी दुआओं से जीवनदान दिया.. उस मशहूर व मारूफ़ बेमिसाल शख्सियत का नाम है हज़रत अल्हाज बाबा सआदत हुसैन नक्शबंदी रहमातुल्लाह अलैहे.
जिन्हें ज़माना हज़रत मशीन वाले बाबा साहब के नाम से जानता पहचानता और पुकारता है. सदी के नायाब वली, सदरूल आलम
हज़रत मशीन वाले बाबा साहब
की सारी जिंदगी पीड़ित मानवता की सेवा में गुज़री. जाति धर्म का भेद किए बिना पीड़ितों की सेवा करने वाले बाबा साहब ने खुद को खिदमते खल्क के लिए समर्पित कर दिया था.. आधी सदी पीड़ितों की सेवा में लीन रहे मशीन वाले बाबा साहब को सिर्फ मुस्लिम ही नहीं मानते हैं.. बल्कि लाखों हिन्दु, सिख, ईसाई एवं जैन धर्म के अनुयायी बाबा साहब से मुहब्बत व अकीदत रखते हैं. तकवा और परहेज़गारी के मामले में आपका कोई जवाब नहीं..ना दौलत की परवाह..ना शौहरत का जुनून..बल्कि खुद को खाकसार समझना आपकी महानता का सबसे बड़ा प्रमाण है..मीडिया से हमेशा दूरी बनाए रखना आपकी खासियत थी. आपको पब्लिकसिटी बिल्कुल पसंद नहीं थी.. और ना ही यह पसंद था कि उनकी करामतें दुनिया के सामने आएं.. यह बात अलग है कि आपका समूचा जीवन चमत्कारों से भरा रहा. बाबा साहब हज़रत इमाम हुसैन व शौहदाए कर्बला की याद में मुहर्रम के दौरान व्यापक स्तर पर लंगर करते.. कभी स्कूल और मदरसे की शक्ल तक नहीं देखी, लेकिन इसके बावजूद हर विषय पर ऐसी चर्चा करते कि बड़े से बड़ा ज्ञानी और आलिम हैरान रह जाते. अल्लाह और नबी के फ़रमान के मुताबिक हमेशा आपने जरूरतमंदों और पीड़ितों की सेवा की.जाति धर्म का भेद कभी नहीं किया. कहते हैं कि जो वाकई वली होता है उसे फ़कीरी ही पसंद रहती है. और ऐसे बुजुर्ग ना दौलत पसंद करते हैं और ना ही शौहरत..ज़माना जानता है कि यह सारी खासियत आप में थीं. इसी ख़ाकसारी का नतीजा था कि जो बात आपकी ज़ुबान से निकल गयी वोह पूरी होकर रहती. अगर बाबा साहब के चमत्कारों की बात की जाए तो उसपर पूरी किताब लिखना पड़ेगी. 22 मई 1997 को जबलपुर में आए विनाशकारी भूकंप के बाद बाबा साहब के वोह सब राज़ फ़ाश हो गए जिसे आप हमेशा पोशीदा रखना चाहते थे. सैंकड़ों लोगों ने इस बात को देखा कि जिस वक्त धरती डोल रही थी, तब आप अपने आस्ताने के बाहर घुटनों पर ताकत लगाकर मानो ज़लज़ले को रोकने के लिए ज़ोर लगा रहे हों. इस बात का रहस्य ख़ुदा जाने. लेकिन सारे देश में यह चर्चा आम हो गयी कि जबलपुर मलवे में तब्दील होने से बच गया. अचानक लोकप्रियता के शिखर तक पहुँचना बाबा हुज़ूर को रास नहीं आया. लिहाज़ा उन्होंने अपने चाहने वालों को यह बता दिया कि अब वह दुनिया को छोड़ देंगे..
और हुआ भी वही. आपने अपने विसाल की तारीख व समय पहले से बता दिया..फिर भूकम्प के 18 दिन बाद इस्लामी माह सफ़र की तीन तारीख यानि 9 जून 1997
को आपने इस दूनिया को अलविदा कह दिया.. यह खबर जंगल में आग की तरह फैली.
जिसने भी सुना वो ग़मगीन हो गया. बाबा साहब को दुनिया छोड़े
25 साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी उनके चाहने व मानने वाले उन्हें अपने बीच मेहसूस करते हैं. घण्टाघर स्थित आपकी दरगाह शरीफ से आज भी लोगों को फ़ैज़ मिल रहा हूँ.खादिमे दरगाह हाजी मुहम्मद शफ़ी कहते हैं जब हज़रत हयात में थे उसी तरह आज भी लोगों के बिगड़े काम बन रहे हैं. बस अब फ़र्क इतना है कि हर ऑंखें बाबा हुज़ूर को देख नहीं सकती हैं.
( लेखक प्रेस क्लब आफ वर्किंग जर्नलिस्टस जबलपुर के अध्यक्ष हैं)