राजा महाराजाओं के शालीन इतिहास की गवाह बिलावर और उधमपुर के मध्य बसी एक जागीर मनकोट आज गुमनामी के अंधेरे में है। वर्तमान तहसील रामकोट को पहचान दिलाने वाला मनकोट नगर आज शायद ही किसी की जुबान पर हो। लेकिन यहां सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण किला, बावलियों की एतिहासिक श्रृंखला और खुले मंच में होने वाले रंगमंच कभी इस इलाके की शान हुआ करते थे।
रामकोट से मात्र चार सौ मीटर की दूरी पर खंडहर बन चुके किले को संरक्षित करने के लिए न तो सरकार, न ही प्रशासन और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने कोई दिलचस्पी दिखाई। नतीजा यह हुआ कि साल दर साल यह किला अस्तित्व खोता गया और आज हालात ऐसे हैं कि किले की मिनारें जहां जमींदोज हो गई हैं, वहीं इतिहास के सुनहरे पलों से भी गायब हो चुकी हैं।
रामकोट से मात्र चार सौ मीटर की दूरी पर खंडहर बन चुके किले को संरक्षित करने के लिए न तो सरकार, न ही प्रशासन और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने कोई दिलचस्पी दिखाई। नतीजा यह हुआ कि साल दर साल यह किला अस्तित्व खोता गया और आज हालात ऐसे हैं कि किले की मिनारें जहां जमींदोज हो गई हैं, वहीं इतिहास के सुनहरे पलों से भी गायब हो चुकी हैं।
राजा मानक देव ने रखा था नाम मनकोट
मनकोट, धार-उधमपुर मार्ग स्थित बसंतर नदी के किनारे एक पहाड़ी पर स्थित है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह छोटा राज्य हुआ करता था, जो 24 किमी लंबाई और 15 किमी चौड़ाई में था। मनकोट की स्थापना जम्मू के राजा नरसिंह देव के समकालीन राजा मनक देव ने 12वीं और 13वीं शताब्दी के मध्य की थी। वहीं अठारहवीं शताब्दी में राजा सुचेत सिंह ने इसका नाम रामकोट रख दिया। अब यह तहसील के रूप में विकसित की जा चुकी है।
स्थानीय निवासी मोहिंद्र मनकोटिया ने बताया कि मनकोट शाही परिवार के वंशज मनकोटिया के नाम से जाने जाते हैं, जो अब जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में रहने लगे हैं। मनकोट में आज भी इस विरासत के अवशेषों में कुछ प्राचीन स्मारक और मंदिर हैं।
मनकोट, धार-उधमपुर मार्ग स्थित बसंतर नदी के किनारे एक पहाड़ी पर स्थित है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह छोटा राज्य हुआ करता था, जो 24 किमी लंबाई और 15 किमी चौड़ाई में था। मनकोट की स्थापना जम्मू के राजा नरसिंह देव के समकालीन राजा मनक देव ने 12वीं और 13वीं शताब्दी के मध्य की थी। वहीं अठारहवीं शताब्दी में राजा सुचेत सिंह ने इसका नाम रामकोट रख दिया। अब यह तहसील के रूप में विकसित की जा चुकी है।
स्थानीय निवासी मोहिंद्र मनकोटिया ने बताया कि मनकोट शाही परिवार के वंशज मनकोटिया के नाम से जाने जाते हैं, जो अब जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में रहने लगे हैं। मनकोट में आज भी इस विरासत के अवशेषों में कुछ प्राचीन स्मारक और मंदिर हैं।
इनमें से एक शिव मंदिर है, जिसमें जगन्नाथ और नंदी और भगवान गणेश की प्रतिमाएं हैं। ग्रामीणों ने बताया कि मनकोट में 12 बावलियों की एक श्रृंखला है, जो भीषण गर्मी के बीच भी यहां के लोगों के लिए प्राकृतिक जलस्त्रोत का एक महत्वपूर्ण साधन है।
कभी मंडी में लगता था जनता दरबार
मनकोट गांव से सटकर एक विशाल मैदान को मंडी के रूप में जाना जाता रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार राजाओं के समय में यहीं पर जनता दरबार भी लगता था और यहीं से आवाम को राजाओं का संदेश भी हासिल होता था। अब इस मैदान में वार्षिक मेले के साथ-साथ रामलीला का भी मंचन किया जाता है।
कभी मंडी में लगता था जनता दरबार
मनकोट गांव से सटकर एक विशाल मैदान को मंडी के रूप में जाना जाता रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार राजाओं के समय में यहीं पर जनता दरबार भी लगता था और यहीं से आवाम को राजाओं का संदेश भी हासिल होता था। अब इस मैदान में वार्षिक मेले के साथ-साथ रामलीला का भी मंचन किया जाता है।
मनकोट एतिहासिक नगर है और इसके संरक्षण के लिए सरकार को प्रयास करने चाहिए। मामला रामकोट पहुंचे मंत्री के समक्ष भी उठाया जा चुका है, जिसमें इस किले को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने और रोशनी के उचित प्रबंध किए जाने की मांग भी की गई है।
प्रदीप कुमार, सरपंच
प्रदीप कुमार, सरपंच