21 सितं. जन्मदिन पर विशेष
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* *तालिब हुसैन*
जबलपुर/भोपाल/दिल्ली. वो वचन के पक्के है..उनकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं..
वह पीड़ित मानवता की सेवा को सबसे बड़ी उपासना मानते हैं...
गरीब, बेसहारा और जरूरतमंदो
के लिए उनका दिल हमेशा धड़कता है....यह सच है कि वह नेता हैं..और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से राज्यसभा सांसद
हैं...लेकिन यह कहने में कोई आपत्ति नहीं कि उनका किरदार,
उनका व्यक्तित्व, उनकी शख्सियत नेताओं से अलग हटकर है..सीधी सादी बात करना
..जो कहना उस पर अमल करना उनकी आदत है..छल..कपट..
झूठ..फरेब..उनकी फितरत नहीं.
जो कह दिया उसे हर हाल में करना है..जो कर नहीं सकते उसके लिए कभी झूठी दिलासा नहीं देते...अब तो आप समझ ही गए होंगे कि हम बात किसकी कर रहे हैं..? जी हाँ..सही समझा आपने..राज्यसभा सांसद, देश पूर्व असिसग सालीसिटर जनरल
और जाने माने वकील विवेक कृष्ण तन्खा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है.
रीवा में जन्मे और जबलपुर को
कर्मभूमि बनाने वाले मध्यप्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता विवेक तन्खा को बचपन से ही समाजसेवा का जुनून था.दरअसल परोपकार की यह परम्परा आपको अपने पिता जस्टिस राजकृष्ण तन्खा से विरासत में मिली है. आप देश के उन चन्द नेताओं में से एक हैं जिनकी ना केवल देशव्यापी पहचान है, बल्कि सेवा का दायरा
भी देशव्यापी है. बात गुजरात के भूकम्प की हो या कश्मीर के ज़लज़ले की ..उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा हो अथवा जबलपुर के विनाशकारी भूडोल
की..संकट और विनाश के हर मोर्चे पर विवेक तन्खा पीड़ितों के लिए राहत बनकर सामने आए..
जो बोल नहीं सकते, जो सुन नही
सकते, जिनकी सोचने समझने की क्षमता नहीं, जिनको माता पिता बोझ समझते हैं, ऐसे बच्चों को आपने अपनी धर्मपत्नि के साथ मिलकर सहारा दिया..उनके लिए जस्टिस राजकृष्ण तन्खा मेमोरियल स्कूल की स्थापना की.
और इस स्कूल के माध्यम से आपने इन बच्चों की अंधेरी दुनिया में ऐसी रोशनी बिखेर दी, कि जिन बच्चों को समाज बोझ
समझता है, वो बच्चे हुनरबाज़ बन गए.हाल ही में इस स्कूल के रजत जयंती समारोह की यादगार
कामयाबी इस बात की गवाह है इन विशेष बच्चों का कैरियर बनाने और उनकी उदास जिंदगी में खुशियों का रंग भरने कितने जतन किए जा रहे हैं. सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोना के दौरान जब बड़े बड़े हाथ दिग्गजों
ने कर दिए थे, तब विवेक तन्खा
मरीजों के लिए मसीहा बनकर उभरे. कौन भूलेगा वो कयामतखेज़ मंज़र..जब कोरोना मरीज आक्सीजन की कमी से जिंदगी से नाता तोड़ रहे थे.. हर तरफ हाहाकार मचा था..निराशा के इस माहौल में विवेक तन्खा उम्मीद की किरण बनकर चमके.
और जरूरत के मुताबिक आक्सीजन सिलेण्डर उपलब्ध कराए..जिसके बाद धीरे धीरे हालात सामान्य हुए.. कह लेने दीजिए कि विवेक कृष्ण तन्खा नेता तो है, लेकिन नेतागिरी नहीं करते..वरना सेवा से ज्यादा वो पब्लिकसिटी को तवज्जो देते.
हम जानते हैं उनका नेचर..उनकी आदत..वो काम पर भरोसा करते हैं. गरीबों के लिए आगे आना..
बेसहारा का सहारा बनना .. जरूरतमंदों की मदद करना वो अपना दीन समझते हैं. सिर्फ और सिर्फ सेवा का दायरा बढ़ाने सियासत में आए विवेक तन्खा
ना केवल जबलपुर बल्कि सूबे की शान हैं..हमे गर्व है कि विवेक तन्खा जैसा मसीहा संस्कारधानी
का सपूत है.
(लेखक जबलपुर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के फाउंडर जर्नलिस्टस हैं)